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Wednesday, April 23, 2008

Mera chautha karwachauth

भोर के इस पहर तुमको सोते हुए ,
देखना इस तरह इस कदर प्यार से|
ऐसा लगता है ख्वाबों में हो एक परी ,
आ गया हूँ मैं सपनो के संसार में |

सुबह की रश्मियाँ छेड़ने जब लगीं ,
नींद आँखों का घर छोड़ने जब लगीं |
मिच्मिचायी नजर, करवटें बेखबर ,
दिल ये चाहा लुटा दूँ मैं जाँ प्यार में |

तेरा अलसायी नजरों से यूँ देखना,
तेरा होठों के जरिये मुझे छेड़ना |
दिल ने चाहा यहीं वक़्त को थाम लूं ,
फिर से खो जावूँ मैं तेरे संसार में |

शाम की है घटा , थक चुका है बदन ,
प्यास होठों पे है मन है फिर भी मगन |
कितनी हसरत से सजती संवरती हुई ,
भर रही है मेरा प्यार वो मांग में |

देखो पल्लू मेरा है सही या नहीं ,
देखो साडी के प्लेटें सही या नहीं |
देखो सच बोलना तुमको मेरी कसम,
कैसी लगती हूँ दुल्हन के सृंगार में |

सारे नाजुक से रिश्ते निभाती हुई,
हर रिवाजों पे सर को झुकाती हुई|
तेरा मासूमियत से मुझे देखना,
झुक गया में तेरे सामने प्यार में |